शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

हम और बेचारे ये कुत्ते

मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या किसी ने मिस्टर एंड मिसेज बिल्ली को सरेआम रमण करते हुए देखा है?...नहीं...न....अगर देखा भी होगा तो उन बिल्लियों को पता नहीं होगा कि उन्हें कोई देख रहा है। बिल्लियों को यदि यह आभास हो जाये कि कोई उन्हें देख रहा है तो वे वहां से हट जायेंगी.. लेकिन कुत्ते को हम सभी ने देखा है सरेआम रमण करते हुए... इसका कारण क्या है.. क्या कभी आपने ध्यान दिया है...इसके पीछे के रहस्य के बारे में हमारे पुराण कुछ बताते हैं..कि कुत्ते ही क्यों सरेआम सड़क पर रमण करते हुए देखे जाते हैं और उन्हें रोकनेवाला आज हममें से कोई नहीं है अगर कोई देखता भी है तो उन्हें नहीं रोककर खुद ही...अगर परिवार के साथ हैं....या अपने किसी छोटे के साथ ...चाहे वह हमारा छोटा भाई हो बहन हो या फिर बेटे-बेटी हों.....हम उनसे नजरें चुराकर वहां से चल देने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
अर्जुन ने धनुर्विद्या का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और द्रुपद की सभा में रखी गयी प्रतियोगिता में राजकन्या द्रौपदी को जीतकर उन्हें अपनी पत्नी बनाकर घर लाये और विनोद में माता कुंती को यह कह दिया कि देखो माता हम तुम्हारे लिये क्या लाये हैं.. माता ने समझा कि जरुर कोई खाने वाली वस्तु होगी। पूर्व वाक्य की तरह माता ने दोहरा दिया कि आपस में बांट लो... और फिर न चाहते हुए भी माता कुंती की बात रखने के लिए पांचों भाईयों को द्रौपदी का पति बनना पड़ा। खैर.. जब भी कोई द्रौपदी के साथ एकांत कमरे में होता उस समय उसका चरण-पादूका (चप्पल या जूता) दरवाजे के सामने ही होता जिससे कोई अन्य भाई पादूका देखकर समझ जाय कि कमरे के अंदर द्रौपदी के साथ कोई भाई पहले से है। इस प्रकार कमरे में कोई भी भाई द्रौपदी के साथ एकांतवास ही करता।
खैर..एक बार द्रौपदी के साथ युधिष्ठिर एकांतवास कर रहे थे। उनका पादूका दरवाजे के सामने ही था। अर्थात् वे कमरे में जाने के पहले बाहर ही चप्पल खोलकर अंदर गये थे। उस समय भी शायद चप्पल चमड़े का ही रहा होगा। कुत्ते ने क्या किया कि युधिष्ठिर भाई साहब का चप्पल उठाकर वहां से हटा दिया। अर्जुन भाई साहब को भी जोर की लगी थी। वे जब द्रौपदी के कमरे में जाने को उत्सुक हुए तो बाहर कोई भी चप्पल जूता न देखकर धड़धड़ाते हुए कमरे के अंदर सीटी बजाते और गुनगुनाते हुए घुस गये। लेकिन वहां तो युधिष्ठिर भाई साहब तो द्रौपदी के साथ रमणरत थे। (अब यह मत पूछियेगा कि दरवाजा बंद क्यों नहीं करते थे तो भाई साहब उस समय घर होते थे चौखट होता था पर दरवाजा कहां होता था...सतयुग...द्वापर..त्रेता या फिर कहें कि ईश्वर का युग था तब चोरी का भय नहीं होता था इसलिये दरवाजे को यहां प्रवेशद्वार ही समझिए।) छोटे भाई ने बड़े भाई को रमणरत अवस्था में देख लिया। युधिष्ठिर को गुस्सा आया। युधिष्ठिर अर्जुन को अभी शाप देनेवाले ही थे कि द्रौपदी ने उन्हें रोक लिया...द्रौपदी ने कहा कि शाप मत दीजिए आपका भाई है..युधिष्ठिर ने कहा कि तुम तो कहोगी ही क्योंकि तुम्हारा तो पोजीशन उसने देखा है तुम क्यों नहीं उसका सपोर्ट करोगी.. खैर युधिष्ठिरजी ने अपने गुस्से को पी लिया। अर्जुन जिस तेजी से अंदर गये थे उसी तेजी से सॉरी भईया कहकर बाहर भाग आये।
खैर युधिष्ठिर भाई ठीक-ठाक होकर जब बाहर आये और बाहर ही अपराधी की तरह खड़े अर्जुन से पूछा कि ऐसी गलती तुमने कैसे की जबकि हमारे बीच अंडरस्टैंडिग है कि जब एक का चप्पल बाहर रहेगा तो अन्य किसी भाई को अंदर नहीं आना है। अर्जुन ने कहा कि बात तो सच है भईया लेकिन बात ये है कि बाहर तो आपका चप्पल मौजूद था ही नहीं इसीलिए मैं धड़धड़ाता हुआ अंदर आ गया था। युधिष्ठिर ने अवाक होकर पूछा.. क्या मेरा चप्पल बाहर नहीं था? ऐसा कैसे हो सकता है? किसने हटाया मेरा चप्पल? आज मैं उसको छोड़ूंगा नहीं। युधिष्ठिर जब इधर-उधर ढूंढते हुए गये तो देखा कि उनका चप्पल बड़े चाव से उनका कुत्ता चबा रहा है। युधिष्ठिर महाराज ने कहा कि आज तुम्हारी वजह से मेरे भाई ने मुझे रमण करते हुए देख लिया है......कुत्ता चप्पल चबाता रहा और चबाते हुए पूछा...तो? इसमें मैं क्या कर सकता हूं? ...युधिष्ठिर ने उसकी बातों को दोहराया.. तो? तुमने इतना बड़ा अपराध किया और मुझी से पूछ रहे हो ..तो? कुत्ते ने कहा कि आज मुझे कुछ नहीं मिला तो आपका चप्पल ही चबा रहा हूं.... युधिष्ठिर ने अपना आपा खो दिया और शाप दिया... कुत्ते..! आज तेरी वजह से मेरे भाई ने मुझे रमण करते हुए देख लिया... तो सुन! मुझे तो सिर्फ एक ने देखा है रमण करते हुए.....मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम्हें सारी दुनिया रमण करते हुए देखेगी।
इसलिये आज ये बेचारे कुत्ते… शरम तो बहुत हैं इनके अंदर लेकिन... युधिष्ठिर के शाप के मारे ये बेचारे कुत्ते....उन्हीं के शाप का नतीजा है कि आज ये सरेआम सड़क पर रमण करने को मजबूर हैं और सारी दुनिया इन्हें ऐसा करते हुए देखती है...

इस कथा के युग-युग बीत गये....
अब लगता है कि किसी दिव्य कुत्ते ने इस शाप को वापस इंसानों में लौटाना शुरु किया है। कुत्ते जब सरेआम रमण करते हैं तो इसके पीछे एक पौराणिक कथा कार्य कर रही होती है युधिष्ठिर का श्राप कार्य कर रहा होता है..जो कि पुस्तकों में लिपिबद्ध हो चुकी हैं। अब हो सकता है कि ऐसी ही कोई घटना घटी हो जो कि पुस्तकों में अभी तक नहीं आयी हो या किसी की जानकारी में अब तक यह बात नहीं है.... यह शोध का विषय है कि आखिर इंसान अब सरेआम ‘करने’ पर उतारु क्यों हो रहा है? क्या युधिष्ठिर का श्राप वापस लौटकर इंसानों पर कार्य करना शुरु कर दिया है? हे युधिष्ठिर महाराज आपने यह क्या किया?

.....तो चलिए थोड़ा बहुत शोध हम ही कर लेते हैं.....
बात तो बहुत दिनों की हो गयी
...हो सकता है कि किसी कुत्ते ने इतने दिनों तक तपस्या कर किसी महादेवता या फिर शिव को प्रसन्न कर लिया हो तो शिवजी ने पूछा होगा कि हे स्वान बता तेरी चाहत क्या है...तो उसने कहा होगा कि एक कुत्ते की गलती की सजा आज पूरी कुत्ते जाति को भुगतना पड़ रहा है प्रभु ये अन्याय बर्दाश्त नहीं होता अतः आप हमें ऐसी बेशर्मी से मुक्त करें....प्रभु ने कहा होगा कि शाप तो शाप होता है मैं तुम्हें उससे मुक्त तो नहीं कर सकता लेकिन तुम्हें थोड़ा सुख जरुर दे सकता हूं... वो कैसे प्रभु? प्रभु ने कहा वो तो तुम तय करोगे...कुत्ते ने बहुत सोचा होगा और फिर प्रभु के सामने ये मांग रखी होगी कि जिस प्रकार से हमारा रमण सारी दुनिया देखती है इन इन्सानों के कारण उसी प्रकार से इन इन्सानों का रमण भी हम कुत्ते और सारी दुनिया देखे...भगवान ने सोचा और कहा ये ठीक है लेकिन मैं सारे इंसानों के लिये नहीं कह सकता जो भक्ति परायण हैं धार्मिक हैं और सात्विक हैं उन्हें छोड़कर जो तमोगुण से भरपुर हैं उनके रमण को तुम और दुनिया देख सकती है... अगर ऐसे वर चाहिए तो बोलो...दिव्य कुत्ते ने सोचा होगा कि अगर मैं भी युधिष्ठिर की तरह बन जाऊं तो कुत्ते और इंसान में भला फर्क क्या रह जाएगा इसलिये कुत्ते ने थोड़ी मर्सी दिखाई और कहा प्रभु यही कर दीजिए और भगवान ने कह दिया होगा...तथास्तु !
.........और शायद इसी का नतीजा है..हम आज बड़े शहरों में दिन-दहाड़े किसी फैंसी पार्क में युवा लड़के-लड़कियों को, आज के दौर में अपटूडेट कहलाने वालों को प्यार के नाम पर ‘किस’ से शुरु हो हर कुछ करते हुए देख लेते हैं।

शायद इसी का नतीजा है....बड़े स्तर पर फेसबुक के माध्यम से हजारों युवा-युवतियों ने संगठित होकर एक विशेष संगठन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ‘किस डे’ मनाने पर उतारू हो गये हैं। हालांकि पुलिस ने उन्हें रोक दिया। सरकार से मैं यही कहना चाहूंगा कि सबसे लड़ा जा सकता है मगर शाप से नहीं लड़ा जा सकता। आज जब कुत्ते सरेआम करते हैं तो किसने उनका क्या बिगाड़ लिया बहुत सारे साम्राज्य आये और गये मगर कुत्ते बिचारे शापमुक्त नहीं हुए। आप क्या सोचते हैं कि पहले के इतने बड़े-बड़े साम्राज्यों में इन कुत्तों के ‘कुकृत्यों’ के प्रति कोई कुछ नहीं किया होगा..तो आप गलत समझते हैं.....अतः अगर ये कुत्तों द्वारा दिये गये या वापस किया गया श्राप है तो वास्तव में इसके साथ जूझना दीवाल पर सर पटकने के बराबर है। अतः अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए भले ही आप इन मनचलों को कुछ भी करने से रोकिये लेकिन इन मनचलों को प्यार करने से न रोकिये नहीं तो इनके प्यार की आग....आगे कुछ भी कहना वाजिब नहीं लगता है। जय श्रीराम !
हम और बेचारे ये कुत्ते

संदर्भः हजारों युवा-युवतियों द्वारा आयोजित किस ऑफ लव कैंपेन

1916 में लिखी गयी थॉमस हार्डी द्वारा लिखी गयी कविता ...इन द टाइम ऑफ ब्रेकिंग ऑफ द नेशन का संदर्भ कभी खतम नहीं होगा। लड़का-लड़की का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना...प्यार से मिलना एक दूसरे के प्रति इमानदार होना...एक दूसरे से वादा करना ......इन सब का संदर्भ कविता के तीसरे पैराग्राफ से हमें मिल जाते हैं। तीनों पैराग्राफ में जिन दैनन्दिन बातों की चर्चा कवि ने की है उनका संदर्भ कभी खत्म नहीं होने वाला...न हुआ और न कभी होगा।

IN THE TIME OF BREAKING OF THE NATION
--------------1-------------
ONLY a man harrowing clods
In a slow silent walk,
With an old horse that stumbles and nods
Half asleep as they stalk.
--------------2-------------
Only thin smoke without flame 5
From the heaps of couch grass:
Yet this will go onward the same
Though Dynasties pass.
--------------3-------------
Yonder a maid and her wight
Come whispering by; 10
War's annals will fade into night
Ere their story die.

इनमें एक अच्छाई है .....वह यह कि न ये हिंदू हैं...न मुसलमान...न सिक्ख और न ईसाई....ये सिर्फ इंसान हैं और वो भी कौन से ....प्यार के राही सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ प्यार के राही आज फिल्मों और सीरियलों में जिस प्रकार से संपत्ति एक बहुत बड़ा विषय है उससे भी बड़ा विषय है दो जवां दिलों के धड़कन... दो जवां दिलों का प्यार...ऐसी फिल्में बनती रहेंगी और सुपरहिट होती रहेंगीं..दो जवां दिलों के बीच का यह प्यार जो किसी के मिटाने से मिट नहीं सकता....मिटाने की कोशिश करनेवाले मिट जाएंगे...और इनका प्यार वैसे का वैसा ही रहेगा..बिल्कुल जवां.. आज हम इसे अश्लीलता का तमगा दे दें या कुछ भी कह लें। सिर्फ कथित सज्जन इसे पर्दे के पीछे या फिर बंद कमरे में करने का हवाला देते हैं लेकिन इन युवाओं को इनका तमीज नहीं...इन्हें तो बस अपने प्यार से मतलब है ....दुनिया जाये चाहें भाड़ में। और ऐसा ही होना चाहिए और होता है। समाज तो बहुत सारे नियमों को बनाते बिगाड़ते बीतते रहा है..